महान रहस्य और महान भ्रम
क्या आप देख सकते हैं कि आपका दुख और अनिश्चितता के रूप में प्रतिरोध से आमना सामना होता रहता है, जो कि जैसे आप रहना, पाना या जीना चाहते हैं, उसमें रुकावट बन कर आता रहता है?
क्या आप इस प्रतिरोध को देख सकते हैं?
क्या आप इस प्रतिरोध को पहचान सकते हैं?
क्या आप इस प्रतिरोध को सम्माहित कर सकते हैं?
क्या आप इस प्रतिरोध से एक हो सकते हैं?
क्या आप इस प्रतिरोध का बिना किसी विचार के आमना सामना कर सकते हैं?
यह आमना सामना सारा खेल समाप्त कर देता है.
मन इस प्रतिरोध को ढकने, परे हटाने में ( नशे, मनोरंजन इत्यादि से), या इसकी किसी संतुष्टिजनक विचार से शाब्दिक व्याख्या करने में लगा रहता है, चाहे वो भगवान
का विचार ही हो.
भगवान का विचार वास्तव में प्रतिरोध को मानने का ही है.
पर हम भगवान के विचार को संतुष्टिपूर्ण बना कर प्रतिरोध को परे हटा देतें हैं या
भगवान के विचार का सहारा ढूंढ लेते हैं, रहस्य खुल ही नहीं पाता.
हम जो चाहे कर लें यह प्रतिरोध नहीं जा सकता.
यह सामने आता ही रहेगा , जब तक इसका आमना सामना न किया जाए.
आरामदायक विचार इसका आमना सामना करने के बीच में परदा हैं.
लेकिन इस प्रतिरोध को क्यों देखा जाए?
अस्तित्व का सत्य, अस्तित्व का रहस्य, महान रहस्य और महान भ्रम को जानने के लिये.
सत्य को जानने में क्या रुकावट है?
हर पल मन कर्म के द्वारा, विचारों के द्वारा, अनुभवों के द्वारा- चाहे वो भगवान के बारे में हों या कोई अन्य सिद्धांत बना कर अस्तित्व के रहस्य को हल करना चाहता है.
मन इस तथ्य को सहन नहीं कर सकता कि वो अस्तित्व के रहस्य को किसी संतुष्टिपूर्ण परिणाम या विचार में नहीं बांध सकता.
यह मन की कार्य प्रणाली पर एक चोट है.
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जीवन की अभिव्यक्ति
क्रोध, भय, चिंता, घृणा, तनाव, दुख, विचार की ऊहापोह जीवन की अभिव्यक्ति है.
इसी तरह सुख, प्रसन्नता, आनंद, विचार की ऊहापोह जीवन की अभिव्यक्ति है.
क्रोध इत्यादि का अर्थ है, ‘जो है’ उसके साथ अस्वीकृति है.
सुख इत्यादि का अर्थ है, ‘जो है’ उसके साथ स्वीकृति है.
उदासीनता का अर्थ है. ‘जो है’ उसकी उपेक्षा.
यह तीनों अवस्थाएं जीवन की अभिव्यक्ति है.
जीवन इन्हीं के द्वारा चलायमान रहता है.
इसलिये ‘जो है’ (उसके साथ अस्वीकृति, स्वीकृति, उदासीनता ) जीवन की अभिव्यक्ति है.
’क्या होना चाहिए’ का विचार मन को ‘जो है’ उससे परे कर देता है.
मन इस भ्रम में रहता है कि वो जीवन की अभिव्यक्ति को अपने पक्ष में या वश में कर सकता है या वह किसी अभिव्यक्ति का चुनाव कर सकता है.
ऐसा कोई उपाय नहीं है न ही बच निकलने का कोई रास्ता है.
यह निस्सहायता आपको शून्यता का स्पर्श करा देती है.
आप जीवन का खेल समझने लग जाते हैं.
अस्तित्व का रहस्य उजागर होने लगता है.
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भ्रम
मानव मन एक बाधित ढंग से कार्य करता है।
यह वस्तुओं, संबधों, घटनाओं, विचारों में पूर्ण संतुष्टि की तलाश करता है।
मन इस भ्रम में रहता है कि वो:
अच्छे, बुरे में चुनाव का;
गल्ती ना करने का;
परिणाम या कल का;
संबधों के आपके अनुसार चलने का;
अपने विचारों को चुनौती ना मिलने का;
आराम पा सकता है।
यह आराम ही भ्रम है।
इस आराम का आपके ध्यान में आना मस्तिष्क को नयीं ऊंचाई पर ले जाता है।
आपकी इच्छा का अर्थ बन जाता है।
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प्रार्थना
प्रार्थना का अर्थ कुछ ‘करना’ नहीं है।
किसी भी तथ्य या चुनौती को बिना शिकायत किये, बिना दोष लगाये या बिना अपने को दोषी मानते हुए देखना ही प्रार्थना है।
किसी भी तथ्य या चुनौती को देख कर मन शिकायत करने, दोष लगाने या अपने को दोषी मानने के लिये भागता है।
प्रार्थना शिकायत करने इत्यादि की व्यर्थता को याद रखने का पारंपरिक तरीका है।
प्रार्थना ‘जो है’ और ‘जो आप सोचते हैं होना चाहिये’ के बीच के प्रतिरोध को बिना किसी आरामदायक विचार, बिना शब्दों के सहन करना है।
जब हम इस प्रतिरोध को देख लेते हैं, सहन कर लेते हैं, सभी प्रश्न गिर जाते हैं।
आप केवल कर्म करते हैं- बिना कल या भविष्य से राहत की इंतज़ार में।
सारी ऊर्जा कर्म में ही केंद्रित हो जाती है।
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