जब आपको, जो हो रहा है या जो आपको परेशान कर रहा है, उसका कोई बुद्धिसंगत, तर्कसंगत, संतोषजनक उत्तर नहीं पाते हो-तो आप भगवान के विचार या किसी और सिद्धांत को अंतिम मानकर, उसकी तरफ आकर्षित हो जाते हो| यह मन के लिये आरामदायक है| क्या मन को इतना सक्रिय किया जा सकता है कि वो इस आराम को नकार दे| यह सक्रियता आपको, ‘जो है’ उसके सामने ला खडा़ कर देती है| मन एक परिवर्तित आयाम में आ जाता है| आप स्वयं को अस्तित्व के पूरे क्षेत्र के रूप में देख लेते हैं|
Y V Chawla